आओ बेवजह चलें...जिस रास्ते पे सूखी सांसें गिरती हैं किनारे के दरखतों से...
पतझड़ शरमा जाए इस बार अक्खीओं की बरसात से...
पतझड़ शरमा जाए इस बार अक्खीओं की बरसात से...
the pursuit of reason... the fight with self...
Posted by Sukesh Kumar Friday, 21 November 2014 at 08:09
Labels: मेरा जीवन-मेरी कविता (My Life-My Verse)
0 comments:
Post a Comment