living between the lines

"जो चाहिए वो मिलता नहीं, जो नहीं चाहिए वो मिल जाता है! बाकी जो बचता है वो ज़िंदगी है, प्रेम और रंजिश के महीन धागे में पिरोई हुई"
उसकी ज़िंदगी एक पन्ने पे करीने से इन्हीं लाइनों के बीच टॅंगी हुई है! जिन लाइनों से वो बचता रहा है उन्हीं लाइनों के साए में!
बहुत से तज़ुर्बात के बाद उसे ये समझ आई थी के प्रेम शब्दों में परिभाषित नहीं हो सकता और शायद इसी लिए उसने अपने लिए वो जगह चुनी यहां शब्द नहीं होते| मगर चाहना से बड़ी होती है हक़ीक़त | उन शब्दों से ज़्यादा अर्थ-पूरण और उसकी ज़िंदगी से ज़्यादा निरार्थक कुछ भी नहीं था|

मेरे अंदर का कवि उस दिन मर गया जिस दिन "reading between the lines" से "living between the lines" का सफ़र मुकम्मल हो गया| मगर कभी कभी ज़िंदगी मचल भी उठती है, लकीरों को तोड़…

ज़िंदा रहना एक मकसद होना है बस, और ज़िंदगी एक एहसास!

1 comments:

  Vikas rawal

21 September 2015 at 20:49

wah....wah