हथेलिओं में कुछ नहीं रह जाता,
और ना ही किसी पे कुछ हक़ होता है !
किसी को तो किताबों में रखे सूखे फूल भी नहीं मिलते,
और किसी को सफ़ा भी नहीं मिलता जहां शुरुआत हुई थी !
और ना ही किसी पे कुछ हक़ होता है !
किसी को तो किताबों में रखे सूखे फूल भी नहीं मिलते,
और किसी को सफ़ा भी नहीं मिलता जहां शुरुआत हुई थी !
कहीं खत भूल जाते हैं अपना ही पता,
और कहीं दुआ लौट जाती है बिन फुसफुसाए !
बचती है तो माथे पे इक भद्दी सी लकीर,
जो हाथ की एक खूबसूरत लकीर को चुरा कर बनी थी !
कोई भी समा बाँध नहीं पाता,
हाथ में पकड़ी ये neat भी नहीं !!
और कहीं दुआ लौट जाती है बिन फुसफुसाए !
बचती है तो माथे पे इक भद्दी सी लकीर,
जो हाथ की एक खूबसूरत लकीर को चुरा कर बनी थी !
कोई भी समा बाँध नहीं पाता,
हाथ में पकड़ी ये neat भी नहीं !!
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