बैर

मायूसीओं ने कर ली है पैरों से दोस्ती,
थोड़ा दूर था, ओर दूर होता रहा हूं !
किस्मत ने दे दिया है मजबूत कांधा,
नज़दीकीओं का बैर ढोता रहा हूं !
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पता नहीं क्यों मैं हर बार खुद को दूर ही पाता हूं,
हसरतों और खवाबों में जो गहरा अंतर है, ना समझो तो ही अच्छा...

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