कन्नी

देखो, फिर, हिलोरे खाती ज़िंदगी कट चली,
दुनिया के उपर नीले आसमान में !
और फिर, दौड़ा एक बचपना उसे लूटने,
हाथ में ले के इशक़े का मांझा,
तीखा किया था जो इंतज़ार के कांच से !


फिर, रुख़ बदल लिया ज़िंदगी ने मेरी दौड़ से परे,
कन्नी एक दे दी थी तूने अपनी छूहन की !!

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