ये झरोखा झँकता है मेरी आखों में,
तुम्हारी रुखसती की याद के साथ !
जहाँ से तुम खड़ी हो के दुनिया निहारती थी,
उसमे अब दूर फलक तक नहीं दिखता,
अब बस तुम्हारी यादों का आईना सा बन गया है वहां !
ये झरोखा झँकता है मेरी आखों में,
तुम्हारी आमद के सवाल के साथ !
उसकी चोगाठ पर निशान तेरे हाथों की मेहंदी के,
इस सावन धूल तो गये,
मगर खुश्बू नहीं गयी !
तुम्हारी रुखसती की याद के साथ !
जहाँ से तुम खड़ी हो के दुनिया निहारती थी,
उसमे अब दूर फलक तक नहीं दिखता,
अब बस तुम्हारी यादों का आईना सा बन गया है वहां !
ये झरोखा झँकता है मेरी आखों में,
तुम्हारी आमद के सवाल के साथ !
उसकी चोगाठ पर निशान तेरे हाथों की मेहंदी के,
इस सावन धूल तो गये,
मगर खुश्बू नहीं गयी !
ये झरोखा झँकता है मेरी आखों में,
सवाल बन के या याद बन के !!
सवाल बन के या याद बन के !!
0 comments:
Post a Comment