भटकन

इस बार वैसी तेज़ धार वाली बारिश की बूंदें नहीं थी !
ना ही देर रात तक रोते पत्ते !
ना भीगी हवा के थपेड़े !
ना ही खराशों से भरा आसमान !

यूं उदास कुछ भी नहीं था,
फिर भी उदासी थी !

कहीं, ज़हन में, भटकन के साथ साथ !!

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