अर्ज़ी

इक अर्ज़ी जो बन बैठती है आखों में,
हर सुबह ख्वाबों के धुआं होते ही,
वो एक एक शब्द जाया होती है,
दिन की घड़ीओं के साथ साथ !
अर्ज़ी में दरखास्त है, फसाना है, ज़ख़्म नहीं !
अर्ज़ी में सकूँ है, जनून नहीं !


अर्ज़ी में तुम्हारा नाम नहीं !!

0 comments: