इक अर्ज़ी जो बन बैठती है आखों में,
हर सुबह ख्वाबों के धुआं होते ही,
वो एक एक शब्द जाया होती है,
दिन की घड़ीओं के साथ साथ !
अर्ज़ी में दरखास्त है, फसाना है, ज़ख़्म नहीं !
अर्ज़ी में सकूँ है, जनून नहीं !
अर्ज़ी में तुम्हारा नाम नहीं !!
हर सुबह ख्वाबों के धुआं होते ही,
वो एक एक शब्द जाया होती है,
दिन की घड़ीओं के साथ साथ !
अर्ज़ी में दरखास्त है, फसाना है, ज़ख़्म नहीं !
अर्ज़ी में सकूँ है, जनून नहीं !
अर्ज़ी में तुम्हारा नाम नहीं !!
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