के पग पग उम्र लांघ रही है,
क्यारीओं से गुलिस्ताँ की !
ज़िंदगी रोज़ नयी खुश्बू चुराती है,
और सज़ा लेती है अपने गुलदस्ते में !
क्यारीओं से गुलिस्ताँ की !
ज़िंदगी रोज़ नयी खुश्बू चुराती है,
और सज़ा लेती है अपने गुलदस्ते में !
बहरहाल, गुलदस्ता मुकम्मल है सिवाए तुम्हारी खुश्बू के !!
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