शाखाएं

ज़िंदगी के पीपल से रोज़ फुन्टते दिन,
अब शाखाएं बन गयी हैं, उम्र की !
जिनपे पत्ते खड़खड़ाते हैं, यादों के
ऐसी ही शाम जब हवा तेज़ चलती है !!
.
.
.
और कोई नहीं होता आस पास,
यारा, मेरी बाहों में सकूँ रखा है तुम्हारे लिए !

0 comments: