कल्पना भर है,
के कोई हाथ हो जो जाती हुई कलाई को थाम ले !
यथार्थ बस इतना,
के हाथों की लकीरें रोक लेती हैं हर अनहोनी को !!
के कोई हाथ हो जो जाती हुई कलाई को थाम ले !
यथार्थ बस इतना,
के हाथों की लकीरें रोक लेती हैं हर अनहोनी को !!
the pursuit of reason... the fight with self...
Posted by Sukesh Kumar Sunday, 26 July 2015 at 09:49
Labels: मेरा जीवन-मेरी कविता (My Life-My Verse)
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