हम बैठे हों समंदर के किनारे,
मगर उससे भी ज़्यादा हों एक दूसरे के किनारे !
तुम्हारी एक नज़र छू के चली जाए मेरी पलकों से,
जैसे एक लहर वापिस लौट जाए मेरे पैर को छू के !
मगर तुम ना रहना समंदर ही की तरह मुझसे अलग !
गर डुबोना नहीं है मुझे दिल में,
तो लंगर ही डाल लो मेरी बाहों के अपनी रूह में !!
मगर उससे भी ज़्यादा हों एक दूसरे के किनारे !
तुम्हारी एक नज़र छू के चली जाए मेरी पलकों से,
जैसे एक लहर वापिस लौट जाए मेरे पैर को छू के !
मगर तुम ना रहना समंदर ही की तरह मुझसे अलग !
गर डुबोना नहीं है मुझे दिल में,
तो लंगर ही डाल लो मेरी बाहों के अपनी रूह में !!
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