जाने कितने दिन गुज़र गये
सूरज को देखे !
मालूम होता है,
उसे मिल गयी है रिहाईश,
तेरी घटा सी ज़ुल्फों तले !
जब तूने झटक कर ज़ुल्फों को बांध लिया था !
मुझे डर है,
आज रात गर तुम्हारी ज़ूलफें बिखर गयीं,
तो कहीं रात ढल ना जाए, सूरज की आमद से !!
सूरज को देखे !
मालूम होता है,
उसे मिल गयी है रिहाईश,
तेरी घटा सी ज़ुल्फों तले !
जब तूने झटक कर ज़ुल्फों को बांध लिया था !
मुझे डर है,
आज रात गर तुम्हारी ज़ूलफें बिखर गयीं,
तो कहीं रात ढल ना जाए, सूरज की आमद से !!
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