यारा सोचो कैसे कोई काग़ज़ों पे स्याह दाग लगा के
धोता है सीने पे लगे दाग !
सावन में कभी निचोड़ना सब काग़ज़,
ज़िंदगी कतरा कतरा बन टपकेगी !!
धोता है सीने पे लगे दाग !
सावन में कभी निचोड़ना सब काग़ज़,
ज़िंदगी कतरा कतरा बन टपकेगी !!
the pursuit of reason... the fight with self...
Posted by Sukesh Kumar Sunday, 23 August 2015 at 09:13
Labels: मेरा जीवन-मेरी कविता (My Life-My Verse)
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