आखें - तेरी या मेरी

तेरी आखें
आखो का दिल से कैसा नाता है यह...
निगाहे कोई झुकती हैं तो हसरतें बिखर जाती हैं!
दिल्लगी करती है ज़ुबान से फिर यह...
जो उठ जाती हैं तो ज़ुबान सिमट जाती है!!


मेरी आखें
आखो का दिल से कैसा नाता है यह...
नज़रें गिरती हैं रुखसार पे, तो हसरतें बिखर जाती हैं!
दिल्लगी करती है ज़ुबान से फिर यह...
की खुद तो नज़्म गा जाती हैं, ज़ुबान सिमट जाती है!!

1 comments:

  rahul mittal

15 March 2010 at 21:30

oh baat ni hai ... :P nice try though ...