अनंत परीक्षा

आज़ादी जो मिली तुझे, आज मांगती बलिदान है!
गुलामी की ज़ंज़ीर थी, आज इंद्रधनुष समान है!!

कर्म जो ना कर रहा, क्या ईशर की संतान है!
ज़िंदगी जो है तेरी, अजीब दास्तान है!!

लिख रहा है वो जो ये विधि का विधान है!
पर आज तू भी हो खड़ा, जो बाहू बल पे मान है!!

वज़ह

बाज़ारो में हमारे भी अब चर्चे होने लगे हैं!!!
इश्क में हम भी नापाक जो होने लगे हैं!

कि आज हम भी खवाबों के साथ रूबरू होने लगे हैं!
बड़ी मुद्दत की नींद के बाद जागने जो लगे हैं!!!