आज़ादी जो मिली तुझे, आज मांगती बलिदान है!
गुलामी की ज़ंज़ीर थी, आज इंद्रधनुष समान है!!
कर्म जो ना कर रहा, क्या ईशर की संतान है!
ज़िंदगी जो है तेरी, अजीब दास्तान है!!
लिख रहा है वो जो ये विधि का विधान है!
पर आज तू भी हो खड़ा, जो बाहू बल पे मान है!!