नाकाफ़ी

यूँ तो काफ़ी होती है प्यार की एक निगाह !
मगर वो अकसर सोचती है के
क्यों खुद प्यार नाकाफ़ी होता है किसी के लिए कभी कभी !

नज़ारा-ए-हाल

हैरत नहीं,
आवाम-ए-फरेब पे !
के जो दुल्हन विलखती हुई विदा होगी,
अभी उसे लेने को जश्न चला आ रहा है !!
अचंभे में तो हूं मैं,
अपने ही नज़ारा-ए-हाल पे !
के आगे आगे मैं नाच रहा हूँ,
पीछे पीछे मेरा जनाज़ा चला आ रहा है !!