अधूरा

यूं पहेले अधूरा होना पता नहीं था !
पर जब से तुम्हें गले लगाया है,
पूरा होना की चाह रहने लगी है !

जैसे के तुम मेरी प्रेरणा नहीं,
बल्कि मेरी ज़िंदगी हो !
मैं तुम्हें अपनी ज़िंदगी में ढालना नहीं चाहता,
बस जी लेना चाहता हूं !

ये बात फिल्मी लगती है; मगर यकीं करो, मैं पहली बार पूरा सच बोल रहा हूं !!

अपने अपने हिस्से

शाम की रोशनिओं को औढ़ा देना अपने दुपट्टे की छननी,
और चांद को कन्नी से बांध लेना !
चरागों के नीचे अधेंरे ज़ाया हों, उससे पहले अंधेरे को भी थोड़ा फुंक मार के सुलगा लेना !
आज सब रोशनिआं अपने हिस्से रखना !!

छाँव के टुकड़े

मैं छाँव के टुकड़े उठा के चल रहा हूं !
कोई छाँव मेरी सानी नहीं,
मैं किसी ओर के हिस्से की धूप ओड़े हुआ हूं !
टूटी हुईं आसानी से जुड़ती नहीं,
अपनी ही परछाईओं को जोड़ने से कतरा रहा हूं !
किसी शाम को मेरा इंतज़ार नहीं,
फिर भी सुबह से शब के फ़ासले तै किया हूं !
मेरा कोई वजूद नहीं,
मैं सायों में अपने अक्स ढूंड रहा हूं !

मेरे दिनों में कोई धूप नहीं,
कुछ छाँव के टुकड़े हैं, बस उन्हें उठा के चल रहा हूं !