हम वहां हैं जहाँ हमको भी,
हमारी खबर नहीं आती!!
पहेले तो वो यादों में रहती थी!
अब तो भूले से याद भी नहीं आती...
By coincidence, part of lines in above has a resemblance with one of Ghalib's composition, which I had not read before composing above lines.
Producing below the composition by Ghalib.
कोई उम्मीद बार नहीं आती
कोई सूरत नज़र नहीं आती
आगे आती थी हाले दिल पर हसी
अब किसी बात पर नहीं आती
हम वहां हैं, जहाँ से हमको भी
कुच्छ हमारी खबर नहीं आती
काबा किस मुह से जाओगे 'गालिब'
शर्म तुमको मगर नहीं आती
0 comments:
Post a Comment