1.
कोई और वक्त हो, कोई और दिन हो, तो मिट भी जाएँगे
तुम्हारे एक इशारे पे
पर आज हाथ थाम लो, और समेट लो बाहों में
आज मेरी हवस है किनारे पे
2.
अश्कों को आज पोछ दो, यह मेरी वफ़ा के टुकड़े हैं
चुभ गए तो, दाग ही लगाएँगे, दामन सारे पे
the pursuit of reason... the fight with self...
1.
कोई और वक्त हो, कोई और दिन हो, तो मिट भी जाएँगे
तुम्हारे एक इशारे पे
पर आज हाथ थाम लो, और समेट लो बाहों में
आज मेरी हवस है किनारे पे
2.
अश्कों को आज पोछ दो, यह मेरी वफ़ा के टुकड़े हैं
चुभ गए तो, दाग ही लगाएँगे, दामन सारे पे
Posted by Sukesh Kumar Friday, 11 September 2009 at 15:39
Labels: मेरा जीवन-मेरी कविता (My Life-My Verse)
1 comments:
15 March 2010 at 21:22
kya baatan...
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