तेरी यादों की खीज़ान आज फिर जैसे जवां हुई सी है!
दश्त में भी जैसे एक शाख-ए-गुल फिर आबाद हुई सी है!!!
तेरे होठों के तिल ने आज फिर कोई तो हरकत की सी है!
जो मेरे होठों पे फिर एक ग़ज़ल ने दस्तक दी सी है!!!
the pursuit of reason... the fight with self...
तेरी यादों की खीज़ान आज फिर जैसे जवां हुई सी है!
दश्त में भी जैसे एक शाख-ए-गुल फिर आबाद हुई सी है!!!
तेरे होठों के तिल ने आज फिर कोई तो हरकत की सी है!
जो मेरे होठों पे फिर एक ग़ज़ल ने दस्तक दी सी है!!!
Posted by Sukesh Kumar Friday, 11 February 2011 at 18:22
Labels: मेरा जीवन-मेरी कविता (My Life-My Verse)
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