वजन

किसी भी सितारे से पूछ लेना के रोशनीओं के राज़ दफ़न नहीं होते चंचल सी झीलों में,
कुछ हवाएं उड़ा ले जाती हैं सब छुपाई बातें और पीस देती हैं बूढ़ी माई के बालों वाली चक्की में,
और बन जाते हैं ख्वाबों के बादल अलसाई हुई नींदों में,
बादलों के गुच्छे सबूत दे जाएँगे के बारीशों में भीगने वाले खो जाया करते हैं अक्सर भीगी हवाओं की तरह !
रोशनियाँ नहीं नाप सका कोई भी, देखने को बस इतना भर के रोशनी है के नहीं !
तू भी बस इतना ही पूछना के मोहब्बत है के नहीं !

के कितनी है मोहब्बत?
सवाल में सिर्फ़ दर्द भरा है जिसके जवाब के आंसू बंजर धरती की तहों में छुप गये हैं !


तौलने से वजन कम क्यों हो जाता है प्रेम का,
इस बात की वजह ढूंढने निकले मेरे गीतों के दो बोल !!

साइड-किक

ये जो हीरो के साथ एक साइड-किक होता है ना, सब बखेड़ा उसी का खड़ा किया होता है !! हीरो को तूल यही देता है आशिक़ी में जल-फूंकने की; सैइडिस्ट कॅरक्टर होता है; पहेले हीरो को इश्क़ की खाई में धकेलता भी है फिर बचाता भी रहता है !

अगर यह कहानी के शुरू में ही हीरो के एक कॅंटाप रख के बोले के चूतियाप छोड़ दो, तो साला कहानी में ट्रॅजिडी होने की नौबत ही ना आए !!

ਓਸ ਝੱਲੀ ਕੁੜੀ ਦਿਆਂ ਬਾਤਾਂ


ਭੱਠੀ ਤੇ ਦਾਨੇਆਂ ਵਾਂਗ ਤਿੜਕਦੀ, ਓ ਫੜ ਫੜ ਹਸਦੀ ਜਦ !
ਕੱਚੀ ਛੱਤੀ ਦੀ ਚੁਗਾਠ ਚੌ ਪੈਂਦੀ, ਓ ਡੁੱਲ ਡੁੱਲ ਰੌਂਦੀ ਜਦ !
ਨਾ ਦਿਨ ਦੇਖਦੀ, ਨਾ ਸੋਚੇ ਰਾਤਾਂ, ਓ ਬਾਤਾਂ ਪੌਂਦੀ ਜਦ !
ਝੀਲਾਂ ਚ ਤਾਰੇਆਂ ਦੀਆਂ ਛਾਲਾਂ,
ਓਸ ਝੱਲੀ ਕੁੜੀ ਦਿਆਂ ਬਾਤਾਂ !!

ਬੰਨੇਰੇ ਤੇ ਪੈਲਾਂ ਪਾਵੇ, ਆਸਮਾਂ ਸਿਰ ਤੇ ਡੌਲਦੀ !
ਵਾਂਗ ਪੰਖੇਰੂੰ ਕੂਕੇ ਤੜਕੇ, ਧਰਤ ਤੇ ਦਿਨ ਰੌੜਦੀ !
ਅਖਾਂ ਦੀ ਰੜਕ, ਮਿੱਟੀ ਵਿਚੋਂ ਹੀਰੇ ਫੌਲਦੀ !
ਸ਼ੀਸ਼ੇ ਦੀ ਲਸ਼ਕੌਰ, ਤੇ ਧੁਪ ਚ ਛਾਂ,
ਓਸ ਝੱਲੀ ਕੁੜੀ ਦਿਆਂ ਬਾਤਾਂ !!

चलना

ज़िंदगी से होता चलूं या जी के चलूं या पीछे पीछे चलूं !
पीछे छोड़ जाऊं या पीछे छूट जाऊं या कहीं रह जाऊं !
चलना भी किसी के रह जाने की कहानी होगा !!

उंगली थामे

ज़िंदगी के उस पल के बाद वाले सारे पल
लगा
के किसी की उंगली थामे तै की हैं सब राहें !
मगर जाने क्यों
उस पल के बाद की सभी राहों में
तै करने लायक कुछ भी नहीं था !

तुमसे नज़दीकी वाले पलों की
छनती धूप
तुमसे दूरिओं वाले पलों की
छांव
का हिस्सा बन के रह गयी !
हमेशा के लिए ...

थोड़ा

कहीं खो जाना, तो थोड़ा मिल भी जाना !
कहीं चले जाना, तो थोड़ा सा रह भी जाना !

रात अपना बिस्तर समेट रही होगी
जब दिन आंखें मलते उठ बैठेगा
दोनों थोड़ा जगे थोड़ा सोए !
थोड़ा सा तो होते होंगे रु-ब-रु !!

निचोड़

उसने दीवार फांदी थी,
सिर्फ़ इसी लिए के,
वक़्त किसी के लिए रुकता नहीं,
फिर मौका मिले ना मिले अपने लिए कुछ करने का !

दीवारें उसके बाद ओर भी कई मिली फांदने को,
बड़ी दीवारें - स्माज की, कसौटीओं की, स्वाभिमान की !
मगर कहीं भी वैसा जादू ना था,
जो उस दिन 'सिर्फ़ एक संतरे' के लिए छोटी सी दीवार में था !

उसने जो भी किया,
उसमे 'अपने लिए' से कहीं ज़्यादा 'तुम्हारे लिए' था !

आज भी चली थी वैसी हवा,
और एक हादसा आज भी हुआ था,
जब हवा से उलझ गया था दुपट्टा !

उसके सारे हादसों का निचोड़ - तुम !

हाशिया

चादर को बना के डायरी का सफ़ा...
रात की स्याही से लिखी...
ठीक हाशिए पे अपनी कहानी...
ओ पीची, महीन सी एक सीधी सिलवट से तै की हुई हाशिए की हद...

गीली लकड़ी सी जलती रही हो मोहब्बत पूरी रात,
और राख सी उड़ा दी हो सब ज़िंदगियाँ !
जैसे किसी ने फूँक मार दी हो !!


आँखों में नींद से पहेले उस राख की जलन,
जीने के लिए काफ़ी है के नहीं ?