बदनसीबी

खुद के ही कंधे पे सर रख रोए, ऐसा ओर कौन बदनसीब होगा,
ज़िंदगी की लकीर लंबी हो और कफ़न भी जिसका रकीब होगा !!

यूँ इश्क़ के मारे तो मुझसे पहेले भी कई हुए हैं !!

रेगिस्तान

ऱत्ता-ऱत्ता जल उठता है,
प्यास से गला सूख जाता है,
होंठ ककड़ी जैसे हो जाते हैं,
शायद रेगिस्तान ऐसे ही बनता है !
बहुत देर तक बारिश नहीं होती !!

झूठे सच

"मैं तुम्हे भूल भी जाऊं,
पर कैसे भूलोगे तुम मुझको"
यह कहते हुए तब
उसकी आँखों में आँसू नही बहे थे !
शायद किसी वक़्त बेवक़्त के लिए आखों में छुपा रखे थे !

और अब भूलने की कोशिश में याद आ जाता है बहुत कुछ,
पता नहीं चलता कब उसकी हंसी में मैं रो जाती हूँ !
ये वही झूठा रोना होता है जो मैं सिर्फ़ ,
उसके मनाने के लिए रोती थी !
पर हम दोनो ही जिसे सच मान लेते थे !!

और अब सब झूठ जैसे सच हो रहे हों !!

प्रेम की पहाड़ी

मैं प्रेम को पहाड़ी समझ चढ़ गया !
सोचा शिखर पर पहुँचुगा तो तेनज़िंग जैसे नाम होगा !
मगर प्रेम एक गहरी खाई है !
और इसमे उतराई नहीं होती, बस गिरना होता है,
और वापिस फिर चढ़ भी नहीं सकते !
हां नाम होता है बहुत किसी रांझे जैसा,
मगर चोट बहुत लगती है !

आज मुझे याद आया वो दिन,
जिस दिन मेरा पैर फिस्सला था इस खाई में !
तुम मुझे बहुत खूबसूरत लगी थी उस दिन !!

चुपके से तो वो भी रोता होगा शायद...

काफ़ी देर छटपटाती है आलिंगन को,
और फिर चीख उठती है सुनी बाहों की तन्हाई !
काजल बिखरा है किसी के इंतज़ार में,
और सुलग रही है ज़ुल्फों में क़ैद रुसवाई !
दरवाज़े को ऐसे ताकती रहती हैं नज़रें,
रेगिस्तान में अकेला पेड़ जैसे ले रहा हो जंभाई !

यह इश्क़ उलझ गया है मुझसे ही,
जीतूं तो किस से और गर हारूं तो किस से यह लड़ाई !
चुपके से तो वो भी रोता होगा शायद,
पर्दों के पीछे ही अक्सर दम भरते हैं ये आंसू हरजाई !


चुपके से तो वो भी रोता होगा शायद...

तंज़

खुद पर ही तंज़ बर्बाद करता हूँ जो अब मैं
तुमने भी कौन सा गीला बचा रखा है किसी फिराक़ में !

कांधा

कई किस्से होते हैं जो मौत के बाद शुरू होते हैं और जन्नत के बाद जो एक जहाँ होता है वहाँ सुनाए जाते हैं| एक किस्सा वहाँ के एक दरखत से टूट के धरती पर गिर पड़ा, मैने उठाया तो लगा के जैसे किसी की अलसाई सी नींद हो जो छूने भर से टूट जाएगी और रख दिया उपर वाली कोठड़ी में पड़े एक संदूक में| वो किस्सा अब सूख के गुलाब की पंखुड़ी बन चुका है जिसमे पायल की सी छन-छन आवाज़ आती है| और मुझे लगता है ये वही पायल है जो मैने महबूब को पहनाई थी|

--------------------------------------------------------------------------------------------


 
तेरा जनाज़ा निकला तो मेरे कूचे से ही था,
मगर कांधा देने आया तुझे मेरे सिवा ज़माना सारा !
मैं बस सोता रह गया !

यूँ तो कोई तगाफूल ना था,
बस मेरा जनाज़ा तेरे जनाज़े के पीछे पीछे आता रह गया !!

कफ़न

मैने सीधे वाले धागे बाँध दिए हैं
तू आना
और तिरछे धागे बुन देना !
इस कफ़न की उमर बहुत हो गयी है
ले आना थोड़ी मिट्टी
तकबीरें कहेंगे लोग, बस सुन लेना !!

ਉਠ ਓਏ “ਸ਼ਿਵ” ਸੁੱਤੇਆ

ਉਠ ਓਏ “ਸ਼ਿਵ” ਸੁੱਤੇਆ, ਅੱਜ ਕਰ ਕੋਈ ਤਕਰੀਰ
ਰਾਂਝੜੇ ਧਰੀ ਬੈਠੇ ਮੌਨ ਤੇ ਵਾਟ ਉਡੀਕਦੀ ਹੀਰ !
ਟਟੋਲ ਛੱਡੇਆ ਜੱਗ ਸਾਰਾ, ਨਾ ਦਿੱਸਿਆ ਫਕੀਰ ਨਾ ਬਚੇਆ ਦਿਲ ਗੀਰ
ਯਤੀਮ ਛੱਡੇ ਜੱਗ ਚ ਤੇਰੇ, ਹੁਣ ਬਸ ਵੱਸਦੇ ਸਾਹਿਬਾਂ ਦੇ ਵੀਰ !
ਹਰ ਆਸ਼ਿਕ਼ ਹੀ ਚੁੱਕੀ ਫਿਰਦਾ ਬਿਰਹੋ ਦੀ ਰੜਕ 'ਤੇ ਮੱਥੇ ਤੇ ਲਕੀਰ
ਅੱਜ ਤੇਰੇ ਗੀਤਾਂ ਤੇ ਕੌਣ ਬਹਾਵੇ ਨੀਰ !
ਨਜ਼ਮਾ ਤੇ ਪਾਬੰਦੀਆਂ, ਚੋਗੇ ਲੀਰੋ ਲੀਰ
ਆਹਂ ਭਰ ਕੇ ਪਰਤ ਗਾਏ ਸਭ ਗਾਲਿਬ ਸਭ ਮੀਰ !
ਨਾ ਲਭੀ ਤੇਰੀ ਮੁਹੱਬਤ, ਸਾਡੇ ਇਸ਼ਤਿਹਾਰ ਜਿਉਂ ਜੂ-ਏ-ਸ਼ੀਰ
ਲਿਖ ਲਿਖ ਵਗਾਈਆਂ ਨਹਿਰਾਂ, ਹੰਝੂ ਰੁਲ ਗਏ ਬਣ ਤਹਰੀਰ !
ਗਿੰਧਾਂ ਵਾਂਗ ਮਾਂਸ ਚੁੰਢੇਆ, ਸ਼ਿਕਰੇ ਹੋਏ ਇੰਝ ਹਕ਼ੀਰ
ਵਂਝਲੀ ਸਾਡੀ ਪਿਆਰ ਵਾਲੀ ਦਿੱਤੀ ਵਿਚੋਂ ਚੀਰ !

ਨੀਂਦ੍ਰ ਡੁਬੇਆ ਤੁੰ ਏਂ, ਸਾਨੂ ਸੁਪਨ ਵਿਖਾਵੇ ਤਕਦੀਰ
ਉਠ ਓਏ “ਸ਼ਿਵ” ਸੁੱਤੇਆ, ਅੱਜ ਕਰ ਕੋਈ ਤਕਰੀਰ !

ਤਕਰੀਰ – address, speech
ਜੂ-ਏ-ਸ਼ੀਰ - To Create A Canal Of Milk, To Perform An Impossible Task
ਤਹਰੀਰ - composition, writing

ਹਕ਼ੀਰ - to become wretched

मकई जैसे

ऐसे धड़कता तो यह रोज़ ही है
पर यूँ ही कभी कभी
फुट पड़ता है सुलगती राख पे मकई के दाने जैसे !