मैने जीवन में विदायगी बहुत देखी है, ना हिज़र ना वस्सल, बस विदायगी ! लोग आते हैं और चले जाते हैं, कभी कोई रुका नहीं | मैने बहुत कोशिश की जाते हुए लोगों को रोकने की, मगर कोई रुका ही नहीं | इस मुआमले में जीवन ने मेरे साथ कभी निरपक्षता नहीं दिखाई और शब्दों ने कभी साथ नहीं दिया| एक बात यह भी है के मैं भी कभी रुका नहीं और कभी किसी को सुना नहीं |
जाते हुए लोगों की पीठ, जाती हुई ट्रेन या बस और खिड़की में से एक उदास मुस्कान, ऐयरपोर्ट के दरवाज़े में ओझल होते हुए लोग, कैब में से बाइ-बाइ करती हथेलियाँ... मुझे वो सब लम्हे याद हैं | विंडबना ये है के मुझे मेरा किसी को पीछे छोड़ना याद नहीं आता | बहरहाल, कुछ याद रखना या किसी के लिए रुकना वैसे भी प्रेम की परख नहीं है |
सही बात यह है के प्रेम की परख ही नहीं हो सकती !