झींगुरों की आवाज़ें हैं शहनाईओं की तरह !
जुगनू टिमटिमाते हैं रोशनीओं की तरह !
झील में कहकशां महफ़िलों की तरह !
रात तन्हा मगर...
जुगनू टिमटिमाते हैं रोशनीओं की तरह !
झील में कहकशां महफ़िलों की तरह !
रात तन्हा मगर...
the pursuit of reason... the fight with self...
Posted by Sukesh Kumar Monday, 23 November 2015 at 20:45
Labels: मेरा जीवन-मेरी कविता (My Life-My Verse)
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