जो रह गया

खूँटी पे अपना हेअर-बैंड टाँग गयी...
तीखी सी हवा में झनक पायल की आवाज़ छोड़ गयी...
डायरी का सफ़ा जिसमे बुकमार्क छोड़ गयी...
शीशे पे टेस्ट की हुई लिपस्टिक की लकीर छोड़ गयी...
चाए की प्याली में ठंडी फूंक छोड़ गयी...
मेरे बिस्तर की सिलवटों में अपनी करवटें छोड़ गयी...

मैने सबके साथ जीना सीख लिया !

बस मेरे काँधे पे इक बाल छोड़ गयी थीं,
मेरी रातों को तो बस वही चुभता रहा है !

अंदर

भीगी तो मेरी रूह है पर मैं जिस्म से ज़हर निचोड़ता हूं !
मैं ऐसा ही हूं, पता नहीं क्यों,
जब अंदर देखना होता है तो खिड़की से बाहर देखता हूं !!

ठिकाने

सुना है राहें मुश्किल होती हैं मोहब्बत की,
मोहब्बतों ने वैसे भी कौन सा ठिकानों की चाह रखी है !

चोरी

घास पे पड़ी पंखुड़ी को उठा के टटोलना,
और झुकी नज़रों और बंद होठों से बेबाक इश्क़ की गवाही !

किसी की धड़कनें चुराना भी एक फन्न होता होगा !!

सुन, ओ यारा

गाल पे रखा हुआ हाथ
जैसे
रेगिस्तान की रेत का टीला,
और चड़ता हुआ दरिआ !

ज़हन के कोने में इक बात
जैसे
राख के नीचे सुलगता कोयला,
और भीगे गले से फूँकी हवा !

टकटकी लगाए आंखें
जैसे
इंतज़ार दुल्हन का,
घूंघट आड़े तमन्नाओं के !

सुन, ओ यारा !
सुन, ओ पीची !