ठिकाना

उम्र से वर्ष कटते रहते हैं,
जैसे परतें कटती हैं, उस पत्थर से जो झरने के ठीक नीचे ठिकाना बना लेता है !
उसी पत्थर की मानिंद मैं भी सोचता हूं के कभी कुछ बदलेगा,
मगर नहीं बदलता, सब वैसा ही रहता है !
झरने का टूट के गिरना पत्थर पे
और तुम्हारा टूट के बिखरना मेरी स्मृति में !

ठिकाना था नहीं, मैने बना लिया है !!

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