फरक

अपने आप से कुछ ऐसे मिल पाता हूं अब,
आईने के आगे दरवाज़ा लगा हो जैसे !
मैं खुद से ही उखड़ गया हूं,
सरहद पे तार लगा के, दो हिस्सों में फरक डाल गया हो कोई जैसे !

मैं पूरा नहीं रहा,
मेरा कुछ बाकी रह गया हो जैसे !

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