कुछ सो गया

रात भर जागता रहा हूं,
कोयल की आवाज़ सुन मगर ऐसे लगा जैसे तुमने आवाज़ दे के उठाया हो !
रात भर जलता रहा, दिया बुझ गया,
मगर दिए के नीचे जैसे अंधेरा रह गया हो !
फाऊंटेन की निब काग़ज़ से लड़ती रही रात भर,
रात का कतरा कतरा मगर जैसे सुबह ओस में रिस गया हो !

आंख लगने को ही थी, खवाब ने दस्तक दी,
हम दोनो में कुछ सो गया था, शायद फिर से अंगड़ाया हो !!

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