रिश्ते का नाम

मेरा तुझसे ही तो रिश्ता है तो सच है लेकिन
नाम तू वो ही बता जो निभाने के लिए हो मुमकिन !

आधी मजबूरी

रो तो दूं मैं किसी रोज़
मगर कहाँ है तस्सली-बख़्श वो अहद !
के तुम भी बहा लोगे दो बूंद आंसू किसी दफ़ा
और बांट लोगे आधे सितम !

के ये दूरी बनाई हो भले मैने पूरी
पर मजबूरी तो आधी तुम्हारी है !!

लौ

बस यूँ ही चलते जाएंगे
साथ चलोगे, तो रास्ता दिखाते जाएंगे !
कुछ तो खुद जलते जाएँगे
बुझा कोई मिलेगा तो उसमें भी लौ भड़काते जाएँगे !!

बंटवारा

एक दिन था बांवरा सा
इक रात थी बौराई सी !
दिन फिसलता रहा रात पे
रात घुलती रही दिन में !
हर दिन चाँद निकलता था
हर रात सूरज जगता था !


दोनो बाँटते फिर रहे हैं अब समों को
यूं कैसे कहां रखे इतने लम्हों के गमों को !!

तुम्हारी कहानी

कहानिओं में घर बसा रहते हैं कुछ ख्याल जो अपने ही घर से निकल नहीं पाते | अंदर से कुण्डी लगा बैठे थे इस डर से के कोई चुरा ले जाएगा इन्हें, अब फँसे हैं खुद की ही बनाई क़ैद में| ये ख्याल पैदा हुए हैं यादों की कोख से इन्हें किसी प्रवरिश की ज़रूरत ही नहीं | डरे सहमे ख्याल बुनते भी हैं, उधेड़ते भी हैं, पर ज़्यादातर उलझे रहते हैं अपनी ही गिरहों में |
तुम भी आओ इस घर में और देखो तुम्हारे कज़रे की धार से भी नुकीले वयंग से काटती हैं यादें और कोई अपनी बाहों के मरहम से ज़ख़्मों को सहलाने वाला भी नहीं आस पास !
नहीं, तुम्हारी कहानी कोई ओर नहीं, मेरे साथ जुड़ी है !!

कुर्बानी

ओर कोई वक़्त निकाले ना निकाले
इक साँस है जिसने हर लम्हे में बंदगी बना रखी है !
बता इससे बढ़कर आशिकी में जुनून है कहीं
लोग तो जान देते हैं मोहब्बत में, मैने ज़िंदगी दे रखी है !!

पेशा ए मोहब्बत

हर शख्स रखता है कुछ बनने की ख्वाहिश,
तुम्हे मरने की आरज़ू से फुरसत नहीं !
मोहब्बत का पेशा है पर ऩफा नुकसान का इल्म ही नहीं !!

ज़माने में रहे होंगे कई तमाशबीन,
गोया शौकीन तुम भी कम नहीं !
इश्क़ में तमाशे हैं पर ये दिल बहलता ही नहीं !!