जहाँ जैसी मिलती हो वहाँ समेट लेता हूँ
मैं रात को चादर भी औड़ता हूँ
जैसे तुझे खुद से लपेट लेता हूँ
मैं रात को चादर भी औड़ता हूँ
जैसे तुझे खुद से लपेट लेता हूँ
the pursuit of reason... the fight with self...
Posted by Sukesh Kumar Sunday, 30 September 2012 at 09:45
Labels: मेरा जीवन-मेरी कविता (My Life-My Verse)
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