वहाँ से जहाँ से
एक रुपया कम पड़ने लगा...
अंबर में कल्पनाओं को भगाना छोड़
आकाश में आकाँशाओं को भगाने लगा...
दिन भर उलझा रहना छोड़
सुलझाने की कोशिश करने लगा...
बारिश में कश्तीआ तैराना छोड़
बचने के लिए कहीं औड ढूँदने लगा...
वहाँ से अब तक
मैं बड़ा कमज़ोर हो गया हूँ
और नहीं तो क्या...
अब मैं लड़खड़ाने के डर से ही रो पड़ता हूँ
तब मैं साइकल से गिर के हंसता था !!
एक रुपया कम पड़ने लगा...
अंबर में कल्पनाओं को भगाना छोड़
आकाश में आकाँशाओं को भगाने लगा...
दिन भर उलझा रहना छोड़
सुलझाने की कोशिश करने लगा...
बारिश में कश्तीआ तैराना छोड़
बचने के लिए कहीं औड ढूँदने लगा...
वहाँ से अब तक
मैं बड़ा कमज़ोर हो गया हूँ
और नहीं तो क्या...
अब मैं लड़खड़ाने के डर से ही रो पड़ता हूँ
तब मैं साइकल से गिर के हंसता था !!
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