कभी साहिल होता है, साथ नहीं
और कभी साथ होता है तो साहिल नहीं !
मझधार में जो मिल के छूट जाए वो साथ ही क्या !!
और कभी साथ होता है तो साहिल नहीं !
मझधार में जो मिल के छूट जाए वो साथ ही क्या !!
the pursuit of reason... the fight with self...
Posted by Sukesh Kumar Tuesday, 9 October 2012 at 22:37
Labels: मेरा जीवन-मेरी कविता (My Life-My Verse)
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