राख सी

झरोखे का काँच कुछ दिन से टूटा हुआ था,
और कल रात बहुत तेज़ बारिश हुई |

हवा के थपेड़ों के साथ रात भर टपके,
पता नहीं बारिश थी या आब-ए-चश्म मेरी !
तकिये की सीलन कुछ ऐसी महसूस हुई,
जैसे कमर का पसीना हो तेरी !

जैसे झरोखे से कोई बूंद टपक जाती है,
तेरी कमर से पसीना टपकता था तब !
फफक फफक दो जिस्म जला करते थे,
इस तकिये के किनारे जब !

कुछ राख सी अब भी सुलगती है,
के जैसे किसी फूँक के इंतज़ार में हो !!

मेरे पास बस कुछ ही साँसें बची हैं,
फूँक दीं, तो फिर एक ही जिस्म जलेगा !!!

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