आज भी हाथों पे कुछ लकीरें बची हुई हैं,
उन लकीरों से धागे बना, हार पहना चली !
लो आज हंस पड़ी मैं और रो पड़ी ज़िंदगी,
अंतिम लतीफ़े में कुछ सजल मोती पिरो चली !
उन लकीरों से धागे बना, हार पहना चली !
लो आज हंस पड़ी मैं और रो पड़ी ज़िंदगी,
अंतिम लतीफ़े में कुछ सजल मोती पिरो चली !
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