अब ना लिखेंगे कोई ग़ज़ल उस तिल पे !
अब ना गाएंगे कोई नज़म उस तिल पे !
वो तिल जो तेरे होठों पे से मेरे होठों तलक
का सफ़र ना तैअ कर पाया !!
पर कैसे बंद करूं जो अब छेद सा लगता है इस दिल पे !!!
अब ना गाएंगे कोई नज़म उस तिल पे !
वो तिल जो तेरे होठों पे से मेरे होठों तलक
का सफ़र ना तैअ कर पाया !!
पर कैसे बंद करूं जो अब छेद सा लगता है इस दिल पे !!!
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