सुबह

लाल हो गये गाल, जो निगाहों की तपिश बिखरी रुख़ के आंगन में,
और तेरी ठंडी सांस का संदेशा मिल गया होठों को !
चुभन दे गयीं माथे की लकीरों में,
तेरी उंगलियाँ, नुकीली, मेरे कजरे से भी ज़्यादा !!

सवाल

गर ऐसा हुआ होता के मैं कहता तुमसे प्यार है और तुम कोई सवाल ना पूछते,
ज़िंदगी बहुत आसान हो सकती थी !
मगर सवाल ना पूछने से जवाबों की कमी पूरी नहीं हो जाती !
तुम मुझे चाहोगे भी तो ये सबूत कौन देगा के चाहते रहोगे... हमेशा !!

लागी

जो जले तो कौन बुझावे,
जली जब राख बने तो फिर कौन जलावे !
इस लागी को कौन छुड़ावे,
कोई खुद छोड़ जाए तो फिर कौन बुलावे !!

आयाम

मेरे पैर छज्जे के सिरे पे,
हाथ काँच के एक ग्लास पे,
आसमाँ छूता हुआ ज़मीन को दूर उफक पे,
आधा चांद हावी होता हुआ सूरज की मधम रोशनी पे…


ये एक साधन मात्र है तुम्हे पाने का !
प्रेम रूह का एक आयाम है, तुम्हे नहीं पता था ?

शिकायत

वो शिकायत करता है रोज़ के,
मैं अब रिश्ते नहीं निभाता !
किस्सा यूं है, यारा, के अब मैं,
खुद के साथ भी वक़्त नहीं बिताता !!

खोज

खिड़कीओं से घूँघट जो उठा,
दिन ने रोशनी पाई, रात ने अंधेरा खोया !
मैने तुम्हे पा कर, अपना अस्तित्व खोया,
मुझे ना पा के, तुमने क्या खोया क्या पाया !
बता दो कुछ पाने को गर बचा है बाकी,
अब जो मैने तुम्हे भी खोया ?

मैं कोशिश में हूं,
इस कहानी के अंत को पाने की…
शुरुआत, मैं खो चुका हूं !!

छींटे

जाने कितने स्याह धब्बे पड़े होंगे,
कोरे काग़ज़ों पे, छींटे जो उड़े कतरा कतरा !
मगर ये दिल वैसे का वैसे है !

बताओ डायरी की इस जिल्द से उस जिल्द के दरमियाँ,
क्या पाया तुमने ?

संभवतः

वो जो ढेर सारा प्यार था सब व्यर्थ हो गया,
क्यूं सोचती हो उसके बारे में !

संभवतः उसका व्यर्थ होना ही मायने रखता होगा,
नहीं तो तुम आज उसको सोचती नहीं !!

राह

सही ये है के मोहब्बत का,
उस ओर का छोर नहीं होता !

तुम किस राह से पहुंची वहाँ ?

मिलन

कोई विछड़ता है, तभी तो कोई मिलता है !
रंज मिलता है या इंतज़ार मिलता है !
मोहब्बत में सब कुछ नहीं लुट जाता,
यारा, कुछ ना कुछ तो फिर भी मिलता है !!

भीगी सी स्याही

ऐसा कुछ नहीं जो लिखने के लिए बचा हो,
कुछ लिखूंगा भी तो वही का वही दोहरा जाऊंगा !
अब तो, शायद, लिखता हूं इस लिए,
के किसी को इंतज़ार रहता है,
बहाने का ! भीग जाने को !!


लो आज फिर भीग लो !!

आभास

बड़ी विरानगी सी थी उस मोहब्बत में,
साथ निभा के भी खुद को तन्हा रखे रखा !
उसे गले लगा के, वो उससे ओर भी दूर हो गयी,
और वो पगला, उसकी छूहन को भी संजोए रखा !!

इक तिशनगी सी थी उस दवा में,
मरने के लिए ता-उम्र ज़िंदा रखे रखा !
वो चाहती थी रखना उसको अलहदा दिल के एक कोने में,
और वो पगला, खुद को शराब में डुबोए रखा !!

रंग

होली के रंगो में कहीं छिप गया उसका तिन !
हिज़र का ले लो मज़ा,
ए दोस्त, बरसात के मौसम में अभी देर है !!

घर घर

सूखे पत्तों की खड़-खड़ाहट जो सुनाई देती है,
बताओ, इनमे तुम्हारी हंसी का शौर कौन सा है !
दवाएं रखीं हैं मेज़ के किनारे पे बहुत सी,
दर्द का गला घोंट दे, इनमे वो ज़हर कौन सा है !!

उमरें गुज़र गयीं इन दीवारों के इंतज़ार की,
ता-उम्र साथ निभाना था जिसमे, सपनों का वो महल कौन सा है !
ज़िंदगी हज़ार खेल ले आई है, रोज़ आज़माइश को,
रूह को जो लुत्फ़ दे, इनमे घर घर वाला खेल कौन सा है !!
बताओ, इनमे घर घर वाला वो खेल कौन सा है !!!

happy ending

खुशी से नाता कुछ ऐसे टूटा उसका,
खुशी नहीं, खुशी के बस साधन ढूंढता है वो !
गमों में आपा कुछ ऐसे डूबा उसका,
गमों को साथ बिठा 'happy ending' वाली कहानी कहता है वो !!

अधूरापन

सोचो के एक पगडंडी है,
छोटी सी !
मैं खड़ा हूं इस छोर पे,
तुम दूसरे छोर पे मुंह दूसरी तरफ किए !
सोचो के हम दोनो के बीच क्या है,
इस फ़ासले के सिवा !


सोचो !

सोचो के गर कुछ है भी,
तो सब अधूरा है !!

यकीं

यकीं मानिए मुझे हैरत होती है हर बार जब मेरी कलम से अल्फ़ाज़ निकल के कुछ अर्थपूरन साकार कर पाते हैं| हैरत इस लिए के 30 पतझड़ गुज़रने के बाद भी जिसे प्रेम नहीं मिला वो प्रेम का दर्शन लिखने से नहीं कतराता| शायद विडंबना इसी की परिभाषा है…
बहरहाल बालकनी के उस तरफ बारिश है और इस तरफ मैं प्यासा हूं,
आज कुछ रंगा पानी भी काम आ जाएगा शायद कलम के साथ साथ…

मौसम

तुम्हारा वो तिन बिना टस से मस हुए,
आज भी तुम्हारे काँधे पे मेरा इंतज़ार किया करता है !
अपने उस काँधे से दुपट्टा मत सरकने देना,
तूफ़ानों के मौसम में अभी देर है !!