घर घर

सूखे पत्तों की खड़-खड़ाहट जो सुनाई देती है,
बताओ, इनमे तुम्हारी हंसी का शौर कौन सा है !
दवाएं रखीं हैं मेज़ के किनारे पे बहुत सी,
दर्द का गला घोंट दे, इनमे वो ज़हर कौन सा है !!

उमरें गुज़र गयीं इन दीवारों के इंतज़ार की,
ता-उम्र साथ निभाना था जिसमे, सपनों का वो महल कौन सा है !
ज़िंदगी हज़ार खेल ले आई है, रोज़ आज़माइश को,
रूह को जो लुत्फ़ दे, इनमे घर घर वाला खेल कौन सा है !!
बताओ, इनमे घर घर वाला वो खेल कौन सा है !!!

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