गुम

वो रोज़ नया दर्द ढूंढ लेता है,
जैसे पुराना दर्द बँट गया हो उससे !
मैं उस दर्द-मंद को मिल ही जाता हूं,
जैसे कोई कांधा गुम गया हो उससे !!

चमक

ज़ंग लगी अपनी आखों से देखो,
क्या सब वही है,
या कुछ ओर है,
या फिर सब वही, मगर ज़ंग लगा हुआ !
मोहब्बत थोड़ा ओर घिस रहा हूं, अब वो चमक नहीं रही इसमे !!

पहली मोहब्बत

'पहली मोहब्बत' नाम की कोई चीज़ नहीं होती !
पहला बस वाक़्या होता है,
जो मोहब्बत सिखा जाता है !
और ये सीख रह जाती है ज़िंदगी भर साथ !!

भीगे होंठ

लहू टपकेगा तो खंजर भी तो भीगेगा !
और इक तुम हो, जो सूखे होंठों से अलविदा कह गये !
आओ, और इक बार फिर भोंक दो अपने होंठ मेरी पलकों में,
और ले जाओ कतल की निशानी !!

झोंके

सुनो ना,
अपनी तस्वीर में रख लो मेरा भी कुछ अक्स !
तुम्हारी तन्हाई का सबब भी हूं, अंजाम भी !!
 --

संवारना मत अपनी ज़ूलफें, जब मिलने आओ मुझसे,
मेरी अठखेलिओं के लिए वही शबनम भरी शाम ले आना !
--

झोंके

कितनी रातें हैं जो अंधेरों से रूबरू नहीं होतीं,
टेबल लैंप जला रहता है अध-बुने ख्यालों का टोला पेन की नोंक पे लिए...
 --

जॅंचता ही नहीं मेरे अल्फाज़ों को कोई ओर,
कलम डूबी है तेरी बड़ी बड़ी आखों के नीले समंदर में जब से !
--

कितना अधूरा बनूँ के तुम्हे मुझे पूरा करने की हो चाहत...
--

घर

हम दीवारें बनाते तो हैं,
सकूँ से ज़िंदगी निभाने के लिए !
मगर घर रह जाता है इक पड़ाव भर सा,
रोज़ की रहगुज़र के बाद इक ठिकाने के लिए !
और रह जाते हैं क़ैद हो के,
हालातों की दीवारों में इक उम्र सहने के लिए !
ज़माने को इक ज़िंदगी दिखाने के लिए !
ज़माने से इक ज़िंदगी छुपाने के लिए !!

अश्क

इशरत-ए-अश्क है आंख से बह जाना,
कभी छुप जाना तो कभी सब कह जाना !

बाँटना

रोते हूओं के सरों का बोझ उठाते,
थक गये हैं उसके काँधे !
गाँठ टिकी नहीं देर तक,
यूँ रिश्ते तो कई बार बाँधे !
वो अब मुंतज़ीर है उन बाजुओं का,
जो बोझ हटा के रख दें थोड़ी खुशी !

या फिर बोझ बाँट देने को मिल जाएँ चार काँधे !!

बाकी

सांस लूं के ना, ज़िंदगी बाकी है क्या ?
क्या लिखूं, कुछ एहसास बाकी है क्या ?

दुपट्टा फिर लहरा गया रुख़ पे, रिश्ता बाकी है क्या ?
तूने फिर नज़रें फेर लीं, मलाल बाकी है क्या ?

मौका

मेरी हंसी से फूटे चंद राज़ सुन जाना,
रुकी हुई घड़ीओं का अफ़साना मालूम होगा !
कभी छुपा के सब दर्द, थोड़ा मुस्कुरा भी जाना,
मेरे जीने का बहाना मालूम होगा !
कभी निगाहों से लड़ के कुछ आंसू पी भी जाना,
मेरे हाथ का पैमाना मालूम होगा !


और इक बार आ के मोहब्बत का मौका दे जाना,
अरे, ‘बेपनाह’ का मायना मालूम होगा !!

गुमशुदा नाम

जब ना मिले तुम्हारी ज़िंदगी के किसी कोने में,
पर चाहना हो सुनने की तो ढूंढना,
मेरा नाम शायद गुमशुदा सूची में हो !

होना

ओर तो ओर तन्हाई भी नहीं !
ऐसा नहीं है के तुम हो ही नहीं !
काश !!