रोते हूओं के सरों का बोझ उठाते,
थक गये हैं उसके काँधे !
गाँठ टिकी नहीं देर तक,
यूँ रिश्ते तो कई बार बाँधे !
वो अब मुंतज़ीर है उन बाजुओं का,
जो बोझ हटा के रख दें थोड़ी खुशी !
या फिर बोझ बाँट देने को मिल जाएँ चार काँधे !!
थक गये हैं उसके काँधे !
गाँठ टिकी नहीं देर तक,
यूँ रिश्ते तो कई बार बाँधे !
वो अब मुंतज़ीर है उन बाजुओं का,
जो बोझ हटा के रख दें थोड़ी खुशी !
या फिर बोझ बाँट देने को मिल जाएँ चार काँधे !!
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