वो रोज़ नया दर्द ढूंढ लेता है,
जैसे पुराना दर्द बँट गया हो उससे !
मैं उस दर्द-मंद को मिल ही जाता हूं,
जैसे कोई कांधा गुम गया हो उससे !!
जैसे पुराना दर्द बँट गया हो उससे !
मैं उस दर्द-मंद को मिल ही जाता हूं,
जैसे कोई कांधा गुम गया हो उससे !!
the pursuit of reason... the fight with self...
Posted by Sukesh Kumar Saturday, 30 May 2015 at 10:31
Labels: मेरा जीवन-मेरी कविता (My Life-My Verse)
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