उधेड़ बुन

हँसी हँसी में डोर दे दी थी तेरे हाथों में
और, कुछ बुन दिया था तेरी ऊँगलिओं ने !
अभी उधेड़ रही हूँ खुद को
फिर नये सिरे से बुनना भी तो है !!

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