दुआ

इक ओर पन्ना किताब-ए-ज़िंदगी से फाड़ रहा हूं,
सब लिखते हैं,
मैं लिखे को मिटाए जा रहा हूं !
इक ख्वाब नींद के बगैर सजा रहा हूं,
सबको मिलती है रात,
मैं दिनों में सोने जा रहा हूं !
इक ओर दुआ, बद्दुआओं के ढेर से समेट रहा हूं,
सब छूट जाता हैं यहीं,
मैं अपना सब उसके पास लिए जा रहा हूं !!


यारा, मोहब्बत को वजूद का हिस्सा मत बनने देना,
जाती है तो ज़िंदगी सीधी गली से चौरस्ता बन जाती है !!

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