यथार्थ

कल्पना भर है,
के कोई हाथ हो जो जाती हुई कलाई को थाम ले !
यथार्थ बस इतना,
के हाथों की लकीरें रोक लेती हैं हर अनहोनी को !!

फिर से

ऐसी ही किसी भीगी रात में,
किसी अंजान मोड़ पे,
फिर से छोड़ जाना मुझे !
शायद गुम हो के फिर पा जाऊं तुम्हे !!

आदत

दरिया सी रफ़्तार तेरी, समंदर सी गहराई मेरी,
यूं तो जानता हूं दोनो हैं जुदा,
बस आदत सी डालनी बाकी है के तू नहीं मेरी !!

खूबसूरत

किसी की सूरत "खूबसूरत" नहीं होती, ना ही किसी की नीली आंखें,
ना होंठों पे तिन, ना मेहंदी लगाए कोई बाहें !
किसी की शायराना ज़ुबान भी नहीं, ना ही लहराती ज़ूलफें,
ना आंखों के इशारे, ना बचकानी मुस्कुराहटें !
ना डूबते सूरज की लाली, ना ही शाम की तेज़ हवाएं,
ना पंछीओं का शोर, ना समंदर की लहरें !


तुम्हे पता है “खूबसूरत” क्या होता है !
हम दोनो का साथ साथ खड़े होना,
एक पत्थर पे जिसपे लहरें टकराती रहें देर तलक समां बांधे !!

अंधेरा

झरोखों की कुछ रोशनी और कांच में बंद बहुत सा अंधेरा !
अंधेरे स्याह कमरों में मिलो कभी तुम मुझसे !!

गिनती

धड़कनें गिनना नहीं आता तो माप लेना अपने कदम,
रफ़्तार की मंदी बता देगी धड़कनों की तेज़ी !!

मजबूरी

अपनी नज़र से बांध लेना कुछ पल अगली बार,
आज कल होड़ में रहती हैं, कोई मशरूफियत दिखाने की !
नज़रें चुराना, नज़रें बचाना या नज़रें झुकाना,
बस परिभाषाएं हैं, कोई मजबूरी छिपाने की !!

चेहरा

पता है सबसे बड़ा दुख था एहसास होना,
के तुमने जिस शख्स से प्यार किया था,
वो तो मैं था पर चेहरा किसी ओर का था !

रात की मोहब्बत मैं भी अकसर,
चांद से निभा जाता हूं !!

पहरेदारी

बस यूँ ही ज़िंदगी ने ठानी है मोहब्बत की पहरेदारी की ज़िद्द !

अब

देखो के ज़िंदगी में शिकवा कोई नहीं अब,
मगर सोचो के तुम्हारी यादों में जागने वाला कोई नहीं अब !
बताओ के आओगे भी तो क्या पाओगे अब !!

सूरज

जाने कितने दिन गुज़र गये
सूरज को देखे !
मालूम होता है,
उसे मिल गयी है रिहाईश,
तेरी घटा सी ज़ुल्फों तले !
जब तूने झटक कर ज़ुल्फों को बांध लिया था !


मुझे डर है,
आज रात गर तुम्हारी ज़ूलफें बिखर गयीं,
तो कहीं रात ढल ना जाए, सूरज की आमद से !!

बुनियाद

मोहब्बत का पीपल जो उग आया था खंडहरों में,
उसपे एक कबूतरों के जोड़े ने अपना घर बनाया था !
अब शिकायत करूं तो किस से,
बेरहम सावन की बौछार से या कच्ची दीवार की ईंट से !

या मान लूं के इस मोहब्बत की बुनियाद ही कमज़ोर थी !!


उम्र

वो रोज़ दुआ करता है के उम्र का कोई पड़ाव आए,
जहां मोहब्बत का ना होना लिखा हो !
उम्र का पन्ना खाए जा रही है ये दीमक की तरह,
मगर अभी उसे ओर बहुत कुछ लिखना बाकी है !!

अलग

हम बैठे हों समंदर के किनारे,
मगर उससे भी ज़्यादा हों एक दूसरे के किनारे !
तुम्हारी एक नज़र छू के चली जाए मेरी पलकों से,
जैसे एक लहर वापिस लौट जाए मेरे पैर को छू के !
मगर तुम ना रहना समंदर ही की तरह मुझसे अलग !


गर डुबोना नहीं है मुझे दिल में,
तो लंगर ही डाल लो मेरी बाहों के अपनी रूह में !!

हक़ीकत

जाने कितनी दफे मैने दिल ही दिल में act किया है तुमसे सब लगाई हुई तोड़ने का scene;
पर कभी भी सही से नहीं कर पाया !
मैं दिल ही दिल में नहीं कर पाता, बताओ, कैसे करूंगा हक़ीकत में !!

समझौते

कभी मैने मुंह मोड़ लिया,
तो कभी उसने नज़रों को चुरा लिया !
मंज़िलों के ख्वाब नहीं बचे थे,
तो रातों को रहगुज़र बना दिया !!

पहचान

पता है घर के असली मायने एक बंजारा ही समझ सकता है,
जैसे मोहब्बत की परिभाषाएं रटी रहती हैं तन्हा शायरों को !
कल रात मुझे इक शायर बंजारा मिला, वो ज़िंदगी से निभा रहा था कोई रंजिश,
और पहचानता था उसे दूर से ही !

मालूम पड़ा, ज़िंदगी, घर और मोहब्बत, बस दो चीज़ों का योग भर है !!