और हो जाती है देरी काफ़ी, खड़े खड़े,
तुम्हे रोकने को शब्द फिर भी नहीं मिलते !
थक जाती हैं आखें इंतज़ार में,
के कोई पलट आएगा कभी भी !
यूं तो मिलती नहीं, मगर जब भी मिलती है ज़िंदगी तो ऐसे,
जैसे तीखी मिर्ची पे चढ़ा हो सोने का वरक !!
तुम्हे रोकने को शब्द फिर भी नहीं मिलते !
थक जाती हैं आखें इंतज़ार में,
के कोई पलट आएगा कभी भी !
यूं तो मिलती नहीं, मगर जब भी मिलती है ज़िंदगी तो ऐसे,
जैसे तीखी मिर्ची पे चढ़ा हो सोने का वरक !!
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