नदी के मुहानों पे

सब ख्वाबों में रंज भर गया,
मेरी नींद थी, उसको लाश कर गया !
कोरे काग़ज़ों में स्याहियां भर गया,
सुनहरी धूप सी थी, जिसको चाँदनी कर गया !
खटास यादों से ज़्यादा एहसासों में भर गया,
शहद में उंगली डाली, तो कड़वा कर गया !


वो तो, यारा, किनारों से ऊब गया,
मगर देखो, नदी के मुहानों पे समंदर डूब गया !!

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