सीढ़िआं

ठंडी रातों में वो,
सीढ़िओं पे महफिलें सज़ा लेता था,
कुछ उपर जाते जाते शामिल हो जाते,
कुछ नीचे उतरते शामिल हो जाते !

बढ़े कोहरे जब सब,
अपने अपने संसार लौट जाते,
वो उन्हीं सीढ़िओं से,
अपने संसार का असबाब समेट लेता,
फिर अगली रात सजाने के लिए !!

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