बिन-मौसम बरसात

तुम निकालो अपनी सूरमे-दानी से घटा,
मैं भी जेबें टटोलता हूं अपनी !
मेरे रुमाल में तुम्हारे हिस्से की बरसात छुपी थी,
आज निचोड़ के ज़रा बिन-मौसम बरसात का लेते हैं मज़ा !!

इंतज़ार

इंतज़ार गर ख़तम हो जाए तो इंतज़ार कहां रहता है,
इंतज़ार की फ़ितरत है बने रहना !

आज की रात बंधी है कच्ची डोरी से,
दुआ करो के पतंग कटे ना !
मैं उड़ना चाहता हूं बेसबब ख्वाबों के बादल के परे,
इंतज़ार के अंधेरे में रात भर !!

माप

मैनें मापा था कई बार वो लम्हा के कितना मुख़्तसर था,
जब तुमने मुझे पहली और आख़िरी बार अपनी बड़ी बड़ी आंखों से चाहा था !
और अब सोचता हूं के बे-कराँ था,
जो मेरी सोच में बस के रह गया है हमेशा के लिए !!

बस अब आके इक बार माथे को चूम देना,
और ख़तम कर देना सब कुछ !
वरना वो लम्हा रह जाएगा इस असीमित खला में,
क़ैद हो के, मेरे अरमानों की तरह !!

सांसें

अभी शामों का कारवां बाकी है काफ़ी...
मेरी ज़िंदगी में गमों का सिलसिला बाकी है काफ़ी...
के सांसें चलती रहें...

किस्सा

काश के मुझे याद करें सब मेरे जाने के बाद ऐसे,
इक था वो, इक थी वो और एक “है” मोहब्बत उनके दरमियां !!
बहरहाल, किस्सा जुटाने में लगे हैं,
ये गुज़रते लम्हे, लेते हैं रात भर दिलों के ब्यान !!

दहलीज

मेरे पांव बांधे रखी है इक सोच, के शायद,
कोई तुम्हे मुझसे भी ज़्यादा मोहब्बत करता है !
तुम्हे भी पता लगेगा के कितनी दर्द-शुदा है,
ज़िंदगी जब खुद-ब-खुद लांघेगी वो दहलीज !!

सवेरा

कुछ दिए सिसकियां भरते हैं
और मान लेते हैं तकदीर अपनी,
बुझी बाती के धुएं को !
कुछ दिए रोते रह जाते हैं
और जलते हैं पूरी रात,
इंतज़ार में रोशनी के !!

सवेरा हो भी तो भला सूरज निकलेगा या नहीं, क्या पता !!

किताब

लाईब्रेरी में बैठी वो धीरे से बोली,
आदमी की पहचान उसकी किताबों से होती है !
कैसे समझाऊं के मेरी गुम हैं सारी किताबें,
मेरी पहचान तो बस कोरे काग़ज़ों से होती है !!

दीवानगी

मुझमें दीवानगी होती तो शायद,
होश वालों की दुनिया में भी कोई किस्सा बन जाता !
अरे, अगर उसमे मुझ जैसा सब्र होता,
तो वो पगला 'कैस' कभी 'मजनू' ना बन पाता !!
 


कभी तो रुक जाओ तुम खुद ही,
के अब मुझमें साहस नहीं बचा...

ख़ुदग़र्ज़ी

तुमसे नज़रें चुराती हूं,
ये सोच, के थोड़ा दर्द कम कर लूं !
थोड़ा सा तो इंतज़ार ओर कर ए ज़िंदगी,
मैं थोड़ी खुशी का इंतज़ाम कर लूं !!

करघा

जैसे किसान बोता है फसल,
अपने खेत में, किसी ओर के लिए !
मैने उलझाया है अपना ताना बना,
अपने ही करघे में, किसी ओर के लिए !

तुमपे मेरा हक़ तो बहुत था,
यारा, पर हक़ जताने का हक़ ना था !!

रास्ता

जब तुम मिलोगी मुझे किसी मोड़ पे,
तब हम अपने अपने ex's को चिढ़ाएँगे,
जो छोड़ गये थे पिछले मोड़ पे हमें,
और फिर पकड़ लेंगे अपनी अपनी राह !

के मोहब्बत कुछ नहीं बस एक बियाबान रास्ता है !
और मंज़िल, कोई नहीं !!

जोंक

और तुम ये भी नहीं समझे के,
कैसे थोड़ी थोड़ी सी जान चली जाती है हर बार तेरे जाने से !
जैसे जोंक चिपक गयी हो मेरी कलम से,
और थोड़ी थोड़ी सी सयाही रिसती है काग़ज़ पे हर बार तेरी याद आने से !!

सर्दी

तू चुरा लेना ख्वाबों से इंदर-धनुशें ऐसे,
के कफ़न भी रंगों संग आ घुले !
तू उड़ाना कहकशां में सितारे ऐसे,
के पिंजरे भी आज़ादी की खातिर संग चले !
तू देना अपनी आमद की खुशी ऐसे
कोई जिस्म पे आंसू भीगी हल्दी मले !
तू ढंक लेना उसे अपने बदन से ऐसे,
जैसे सर्दी में नींद मिल जाए कंबल तले !

संज्ञा

रिश्तेदारों ने मुझे “पत्थर” की संज्ञा दे दी है,
मैं दुपट्टों से बंधे रिश्ते तक तोड़ जाता हूं !
दोस्तों ने मुझे “कीचड़” की संज्ञा दे दी है,
के मैं दिलों पे धब्बे छोड़ जाता हूं !!
दुश्मनों ने मुझे “मिट्टी” की संज्ञा दे दी है,
गिलों को दफ़न कर खुद पे ही कफ़न ओढ़ जाता हूं !!!

आ रहा हूं या जा रहा हूं, पता नहीं,
जिधर दिखती है राह उधर ज़िंदगी मोड़ जाता हूं !
मुझे नहीं पता मैं क्या हूं,
कोई अक्षर मिलता है, मैं बस कहानी जोड़ जाता हूं !!

कश्मीर की बातें

एक दिन तुमको भी तो जेहलम बहा ले जाएगी,
समंदर में मुझसे मिलाने के लिए ,
मैने बोला था तब अंगड़ाई लेते हुए !
उसने अपनी कश्मीरी आवाज़ में पूछा था जब,
क्या “डाअर” नहीं लगता आपको,
इस तरह जेहलम से लड़ाई लेते हुए !

उसके बाद कई बार देखा है मैने,
उसकी बड़ी बड़ी आखों को,
अपनी ही जेहलम से बेवफ़ाई करते हुए !!

चाशनी

जाने कहां अटका रह जाता है एहसास जिसपे मेरा हक़ था,
के दिल की मायूसी रहती है होठों पे हंसी बन के !

और जाने कौन सी छननी से निचोड़ लाते हैं रिश्ते वो,
के किसी का प्यार रहता है गालों पे चाशनी बन के !!