करघा

जैसे किसान बोता है फसल,
अपने खेत में, किसी ओर के लिए !
मैने उलझाया है अपना ताना बना,
अपने ही करघे में, किसी ओर के लिए !

तुमपे मेरा हक़ तो बहुत था,
यारा, पर हक़ जताने का हक़ ना था !!

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