जोंक

और तुम ये भी नहीं समझे के,
कैसे थोड़ी थोड़ी सी जान चली जाती है हर बार तेरे जाने से !
जैसे जोंक चिपक गयी हो मेरी कलम से,
और थोड़ी थोड़ी सी सयाही रिसती है काग़ज़ पे हर बार तेरी याद आने से !!

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